मोमबत्ती और अगरबत्ती दो बहने थीं। दोनों एक मन्दिर में रहती थीं।
बडी बहन मोमबत्ती हर बात में अपने को गुणवान और अपने फैलते प्रकाश के प्रभाव में सदा अपने को ज्ञानवान समझकर छोटी बहन को नीचा दिखाने का प्रयास करती थीं।
अगरबत्ती सदा मुस्कुरायी रहती थीं। उस दिन भी हमेशा की तरह पुजारी आया,दोनोँ को जलाया और किसी कार्य वश मन्दिर से बाहर चला गया।
तभी हवा का एक तेज़ झोका आया और मोमबत्ती बुझ गई यह देख अगरबत्ती ने नम्रता से अपना मुख खोला-‘बहन, हवा के एक हलके झोके ने तुम्हारे प्रकाश को समेट दिया परंतु इस हवा के झोके ने मेरी सुगन्ध को ही चारों तरफ बिखेर दिया।
यह सुनकर मोमबत्ती को अपने अहंकार पर शार्मिन्दगी हुई।
आशाएं ऐसी हो जो- मंज़िल तक ले जाएँ,
मंज़िल ऐसी हो जो- जीवन जीना सीखा दे,
जीवन ऐसा हो जो- संबंधों की कदर करे,
और संबंध ऐसे हो जो- याद करने को मजबूर करदे
“दुनियां के रैन बसेरे में.. पता नही कितने दिन रहना है”
“जीत लो सबके दिलो को.. बस यही जीवन का गहना है”..!!