पौराणिक काल में एक थी लड़की। नाम था वृंदा।
राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था।
वृंदा बचपन से ही भगवान विष्णु जी की
परम भक्त थी।
बड़े ही प्रेम से भगवान की पूजा किया करती थी।
जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में
दानव राज जलंधर से हो गया,
जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था।
वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी।
एक बार
देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ
जब
जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा -स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं
आप जब तक युद्ध में रहेगें मैं पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी,
और
जब तक आप वापस नहीं आ जाते
मैं अपना संकल्प नही छोडूगीं।
जलंधर तो युद्ध में चले गए और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई।
उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके
सारे देवता जब हारने लगे तो भगवान विष्णु जी के पास गए।
सबने
भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि-वृंदा मेरी परम भक्त है
मैं
उसके साथ छल नहीं कर सकता पर देवता बोले – भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है
अब आप ही हमारी मदद कर सकते हैं।
भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा
और
वृन्दा के महल में पहुंच गए जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा,
वे तुरंत पूजा में से उठ गई
और
उनके चरण छू लिए।
जैसे ही उनका संकल्प टूटा,
युद्ध में देवताओं ने जलंधर को मार दिया
और
उसका सिर काटकर अलग कर दिया।
उनका सिर वृंदा के महल में गिरा
जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पड़ा है
तो
फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?
उन्होंने पूछा – आप कौन हैं जिसका स्पर्श मैंने किया,
तब भगवान अपने रूप में आ गए
पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई।
उन्होंने
भगवान को श्राप दे दिया
आप पत्थर के हो जाओ,
भगवान तुंरत पत्थर के हो गए।
सभी देवता हाहाकार करने लगे। लक्ष्मी जी रोने लगीं और प्रार्थना करने लगीं
तब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया
और
अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गई।
उनकी राख से एक पौधा निकला
तब भगवान विष्णु जी ने कहा- आज से इनका नाम तुलसी है,
और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा
जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा
और मैं बिना तुलसी जी के प्रसाद स्वीकार नहीं करुंगा। तबसे
तुलसी जी की पूजा सभी करने लगे
और
तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।
तुलसी महारानी की जय
हरि हरि बोल